दशास्वमेघ घाट और गंगा आरती
दशास्वमेघ घाट वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित एक पौराणिक घाट है यह वाराणसी कैंट से 6 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है यह घाट गोदौलिया चौराहे से विश्वनाथ जी जाने वाले रास्ते में आगे चलकर गंगा जी के किनारे पर स्तिथ है ।
बनारस में कुल चौरासी घाट है पर उन सब में केवल पांच घाट ही महत्व पूर्ण है जिन्हे पंच तीर्थ कहा जाता है ये पांच घाट है आदिकेशव घाट, अस्सी घाट, मणिकर्णिका घाट, पचगंगा घाट,दशास्वमेघ घाट ही प्रमुख है ।
दशास्वमेघ घाट का नाम दशास्वमेघ क्यों पड़ा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा दिवोदास ने यहां दस अश्व मेघ यज्ञ किया था जिस कारण इसका नाम ही दशास्वमेघ घाट पड़ा
एक और पौराणिक मत के अनुसार नागवंशीय राजा विरसेन ने चक्रवर्ती बनने की इच्छा से यहां पर दस अश्वमेघ यज्ञ किए थे जिस कारण इसका नाम दशास्वमेघ घाट पड़ा
इस घाट के अगल बगल बहुत सारे मंदिर है घाट पर ही प्राचीन शीतला माता का मंदिर है जो सीढ़ियों से ऊपर जाने पर है आप यहां भी दर्शन कर सकते है पहले यह घाट भी दशास्वमेघ घाट के ही हिस्से में था पर अब इसको शीतला घाट कहते है
दशास्वमेघ घाट पर ही दशास्वमेघ प्लाजा बना हुआ है यह मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है प्लाजा में खाने पीने से लेकर खरीदारी करने और एक रूफ टॉप रेस्टुरेंट भी खुलना है जिससे आपको खाने पीने के साथ गंगा जी का व्यू भी मिल सके की व्यवस्था की गई है
प्लाजा में कुल 144 दुकानें है जिनमे लकड़ी के खिलौने बनारसी साड़ी खाने पीने के आइटम हैंडीक्राफ्ट के आइटम आदि मिलने की वयवस्था की गई है तो आप यदि यहां आए तो प्लाजा भी जरूर घूमे।
आप यहां पे नाव की सवारी भी कर सकते है जिसका प्रति वायक्ति 40 या 50 रुपया लगता है आप गंगा उस पार जाकर रेती (बालू) पर भी घूम सकते है और उस पार घुड़सवारी और ऊंट की सवारी का आनंद भी ले सकते है ।
विश्व प्रसिद्ध वाराणसी की (काशी )की गंगा आरती
दशास्वमेघ घाट पर ही विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती होती है जिसको देखने के लिए विश्व भर के श्रद्धालु आते है और आरती का लुत्फ उठाते है आप भी बनारस आए तो आरती का आनंद जरूर उठाएं
गंगा आरती प्रतिदिन शाम में आयोजित होती है यह गंगा सेवा निधि ट्रस्ट द्वारा आयोजित की जाती है साल 1991 से पहली बार गंगा आरती दशास्वमेघ घाट पर शुरू हुई है तब से आज तक लगातार आरती होती है और जो बिल्कुल निशुल्क है हां आरती के बाद आप प्रसाद खरीद सकते है
प्रतिदिन शाम को 6 बजे से 7 बजे के बीच में सात अर्चक द्वारा गंगा आरती की जाती है जिनके लिए घाट पर ही घाट से थोड़ा ऊंचा चबूतरा बना हुआ है इनके साथ रिद्धि सिद्धि भी होती है पहले अर्चक द्वारा आरती की जाती है जोकि घंटे घड़ियालों और डमरू की आवाज और गंगा जी में भक्तो द्वारा जलाए दियो और आरती के द्वारा माहौल एक दम भक्ति मय हो जाता है और भक्तो को अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है
पहले अर्चक पहले अगरबत्ती से फिर लोहबान से फिर एक बड़े आरतीदानी से आरती होती है फिर आगे सब कुछ अलग चीजों से आरती होती है और भक्त जब आरती होती है तो मंत्र मुग्द हो जाते है घंटे घड़ियाल और डमरू की ध्वनि आपको एक अलग एहसास कराएगी यहां आरती से आपको सकारात्मक ऊर्जा का एहसास होता है
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ये सारी कहानियां और बाते पौराणिक ग्रंथों और तथ्यों पर आधारित है हम किसी बात सत्यता की की कोई गारंटी नहीं लेते ।
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