दुर्गा मंदिर वाराणसी और इसका रहस्य
जैसे कि आप जानते हैं बनारस मंदिरों का शहर है तो यहां हर जगह आपको कोई न कोई प्रसिद्ध मंदिर मिल ही जाएगा ।और यहां के हर मंदिर की आपको को कोई न कोई पौराणिक कथा या कहानी जरूर मिलेगी आज हम आपको वाराणसी में दुर्गा कुंड स्तिथ प्राचीन दुर्गा मंदिर के बारे अपनें इस ब्लॉग पोस्ट में तो आइए आपको बताते हैं दुर्गा कुंड स्थित दुर्गा मंदिर के बारे में , क्या है इसकी कहानी , इसके पुजारी की कहानी , कुंड की कहानी , तो आइए जानते है ,विस्तार से मेरे इस ब्लॉग पोस्ट में ।
दुर्गा जी मंदिर
दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा जी का मंदिर दुर्गा कुंड पर स्थित है यह वाराणसी कैंट से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है आप वाराणसी कैंट स्टेशन से किसी भी वहां द्वारा यहां आसानी से पहुंच सकते है आप अपने वहां द्वारा भी यहां आ सकते है इस मंदिर के पास एक बहुत ही प्राचीन तालाब भी है यहां भी दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है नवरात्र महीने में भक्तों की लंबी कतारें रहती है और नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा माता कुष्मांडा के रूप में होती है सावन में भी भक्त माता के दर्शान करते है जब भी बनारस घूमने आए अपने घूमने की जगह में इन्हें भी शामिल करें तालाब की खूबसूरती रात को देखने को मिलती हैं जब फौहारा और लाइट चालू होती है ।
दुर्गा मंदिर का नव निर्माण 18 वी शताब्दी में बंगाल की रानी भवानी ने कराया था यह मंदिर बिसा यंत्र पर आधारित है जिसका अर्थ यह है की मन्दिर बीस कोणो की यांत्रिक सरंचना की आधार शीला पर बना हुआ है देवी के केंद्रीय प्रतीक के अनुसार मंदिर को लाल रंग से ही बनाया गया है ।
दुर्गा मंदिर में दुर्गा देवी की पूजा यंत्र रूप में पूजा होती है मान्यता के अनुसार जहा देवी स्वय प्रकट होती है वहा उनकी मूर्ति स्थापित नही होती है यहां भी मां के चरण पादुका और मुख की पूजा होती है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ निशुंभ दैत्यों का वध करने के बाद देवी ने यह विश्राम किया था इसीलिए देवी को यहां प्रकट हुआ मानते है यह कुछ लोग यन्त्र की पूजा भी करते है मंदिर परिसर में सकारात्मक ऊर्जा का अलग प्रभाव भी महसूस कर सकते है , यह मन्दिर अनादि काल से है और बहुत ही प्राचीन मंदिर है ।
कहते है पहले काशी में तीन मंदिर ही महत्व पूर्ण थे काशी विश्वनाथ माता अनपूर्णा और दुर्गा मंदिर
मान्यता है इस मंदिर में दर्शन करने के उपरांत यहां के पुजारी का दर्शन करना जरूरी है वरना पूजा सफल नही होती है उसकी भी एक पौराणिक कहानी है ।
पुजारी की कहानी
कहा जाता है की पुराने समय में कुछ चोर अपने किसी कार्य से जा रहे थे तो मंदिर के सामने से गुजरते समय माता को प्रणाम किया और माता से मन्नत मांगी की हमारा काम हो गया तो हम मानव बलि देंगे और उनका काम हो गया तो वो वापस आके एक उचित वायक्ती की तलाश करने लगे जिसकी बलि दी जा सके कुछ समय बाद मंदिर के पुजारी वहा आए तो उन्होंने देखा की पुजारी को कोई दाग नहीं है तो उन लोगो ने पुजारी को पकड़ लिया और बलि देने के लिए ले जाने लगे तब पुजारी जी न कहा की आप मुझे पूजा का समय है पूजा कर लेने दीजिए तब बलि दीजिएगा और चोर मान गए पूजा केबाद उन लोगो ने पुजारी का सिर जैसे ही कटा तुरंत माता प्रकट हुई और पुजारी को जिंदा कर दिया और वरदान मांगने को कहा इस पर पुजारी ने कहा माता मैं आपके चरणों में विश्राम करना चाहता हु फिर माता ने उनको अपने चरणों में स्थान दिया और कहा जो कोई मेरे दर्शन के पश्चात तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी पूजा सफल नही होगी और देवी अन्तर्ध्यान हो गई और पुजारी ने वही समाधि ले ली और तब से भक्त माता के दर्शन के बाद पुजारी जी के दर्शन करते है ।
कहनी कुंड की
मंदिर परिसर में बहुत ही बड़ा तालाब है जिसे कुंड भी कहते है यह कुंड भी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता के द्वारा मारे गए राजाओं के खून से बना हुआ है ।
कहा जाता है आदि काल काशी के राजा सुबाहु ने अपनी पुत्री का स्वयंवर रखा था परंतु स्वयंवर से पहले ही रानी को सपने में अनपनी शादी राजकुमार सूर्यकुमार से होती दिखाई तो राजकुमारी ने ये बात अपने पिता से बताई तो अगली सुबह राजा ने स्वयंवर में आए सारे राजाओं को ये बात बताई तो सारे राजा राजकुमार के खिलाफ हो गए और युद्ध छेड़ दिया कहते है युद्ध से पहले राजकुमार ने माता की पूजा की और विजय का आशीर्वाद मांगा तब माता स्वय प्रकट हुई और सारे राजाओं को मार दिया जिसमे काफी रक्त पात हुआ और कुंड का निर्माण हो गया यही कुंड आगे चलकर दुर्गा कुंड के रूप में प्रचलित हुआ है ।
मंदिर के पीछे की तरफ अनपुर्णा देवी और गणेश जी का मंदिर है मंदिर परिसर में भी बाबा काल भैरव माता सरस्वती मां काली मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थपित है तो आप इनके भी दर्शन करे और आशीर्वाद प्राप्त करे ।
यह मुंडन आदि संस्कार भी होते है हवन कुंड में रोज हवन इत्यादि भी होता है।
आप जब भी बनारस आए तो तो यहां जरूर दर्शन करे आप इसके पास में और भी मंदिरो में दर्शन कर सकते है । जैसे संकट मोचन मंदिर, मानस मंदिर , आप यहां बीएचयू भी खूमने जा सकते है ।
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
Q1- दुर्गा मंदिर वाराणसी में कहा स्थित हैं ?
Ans- दुर्गा मंदिर वाराणसी में दुर्गा कुंड पर स्थित है।
Q2- यहां दुर्गा जी के किस रुप की पूजा होती है ?
Ans- यहां दुर्गा जी के चौथे स्वरूप माता कुष्मांडा की पूजा होती होती है ।
Q3- दुर्गा जी की सवारी क्या है ?
Ans- दुर्गा जी की सवारी शेर है ।
आप यह भी पढ़ सकते है संकट मोचन हनुमान मंदिर
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डिस्क्लेमर सारी कहानी पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं हम इसके सत्यता का कोई दावा नहीं करते है
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