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Manikarnika Ghat : मणिकर्णिका घाट वाराणसी ( काशी ) जहां दिन रात जलती रहती है चिताएं

बनारस शहर या काशी को घाटों का शहर भी कहते है यह पे कुल 6 से 7 किलोमीटर की दूरी पर कुल 84 घाट है इन्ही घाटों में एक मोक्ष प्रदान करने वाला घाट भी है जहा दिन रात चौबीस घंटों चिताओं को जलाया जाता है जिसे Manikarnika Ghat : मणिकर्णिका घाट वाराणसी ( काशी ) जहां दिन रात जलती रहती है चिताएं  कहा जाता है तो आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से इस पोस्ट में ।

मणिकर्णिका घाट 

मणिकर्णिका घाट काशी के 84 घाटों में सबसे पुराना और प्राचीन घाट है यह घाट अपनी निरंतर और सदियों से जलती चिताओं की आग के कारण जाना जाता है कहते है जिसका यहां अंतिम संस्कार होता है उसको सीधे  मोक्ष की प्राप्ति होती है 

मणिकर्णिका घाट उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले और वाराणसी शहर में स्तिथ है आप वाराणसी कैंट से सीधे ऑटो लेकर वाराणसी चौक  चौराहे से आगे गलियों द्वारा जा सकते है ।

कहते है यहां कभी चिता की आग नही बुझती है हर रोज यहां 250 से 300 करीब शवों का अंतिम संस्कार होता है लोग शवों के साथ अपनी बारी का इंतजार करते है और फिर दाह संस्कार करते है । 

यहां पे आज भी शवों पर टैक्स की पुरानी परंपरा जारी है और आज भी टैक्स वसूला जाता है बस नियम थोड़ा बदल गया है ।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब सूर्यवंशी  राजा हरिशचंद्र की  देवता परीक्षा ले रहे थे और उनका सब कुछ दान में ले लिया था  तो वह यही पे काशी में घाट पर शवों से कर वसूलते थे ।

जैसा की हमने पहले भी बताया हैं की बनारस में कुल चौरासी घाट है पर इन सब में केवल पांच ही प्रसिद्ध है ये पांच घाट है आदि केशव घाटअस्सी घाट पंचगंगा घाटदशास्वमेघ घाट , मणिकर्णिका घाट  आज चलिए जानते है मणिकर्णिका घाट के बारे में।आइए जानते हैं  मणिकर्णिका घाट पौराणिक मान्यताओं कथाओं को

पौराणिक महत्व 

कहते है यह पे भगवान विष्णु जी ने हजारों साल तक भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी जब उनके तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ यहां आए तो विष्णु जी ने उनसे वरदान मांगा की काशी पुरी श्रृष्टि के विनाश के समय भी इसी तरह से रहे और इसे कभी नाश  ( नष्ट ) न किया जाय तब उन्होंने आशीर्वाद दिया की काशी प्रलय के समय भी सुरक्षित रहेगी और कभी इसका विनाश नही होगा और जो भी इस जगह आएगा उसके मोक्ष की प्राप्ति होगी तभी से ये मान्यता हैं की यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

कैसे पड़ा नाम महाश्मशान घाट

 मान्यता यह भी की भगवान शिव जी ने देवी सती के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार यही इसी घाट पर किया था जिस कारण इसका नाम महाश्मशान घाट पड़ा और तभी मोक्ष की कामना रखने वाले इंसान यहां आने की कामना रखता है।

 कैसे पड़ा नाम मणिकर्णिका

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु जी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पे आए थे तो उन्होंने विष्णु जी  ने यहां भगवान शिव जी के स्नान के लिए एक कुंड का निर्माण किया था  जिसको मणिकर्णिका कुंड कहते है , इसी कुंड में माता पार्वती का कान का कुंडल कर्ण फूल  (कान की बाली) कुंड में गिर गई थी जिसे शिव जी खोज कर निकला था उसी को   मणिकर्णिका ( कान की मणि ) भी कहते  को इसी कारण इसका  नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा ।

एक और पौराणिक मान्यता है की जब अपने पिता के बात से रूष्ट होकर खुद को आग लगा लिया था तब शिव जी उनके आधे जले शव को लेकर पूरी श्रृष्टि में घूम रहे थे भगवान विष्णु से उनकी ये दशा देखी नही गई और उन्होने अपना सुदर्शन चक्र उनके शरीर पर छोड़ दिया था उनके शरीर के 51 टुकड़े होकर धरती पर 51 ( इक्यावन) जगहों पर गिरे जहा जहा ये टुकड़े गिरे वहा वहा शक्ति पीठ का निर्माण हुआ है ।

और यहां पर देवी सती के कान की मणि  यहां गिरी थी इसलिए इस जगह का नाम मणिकर्णिका पड़ा  इस जगह को भी शक्ति पीठ की मान्यता प्राप्त है ।

मणिकर्णिका घाट के उत्सव और परम्परा

नगर वधुओं का नृत्य 

जलती चिताओं के बीच एक चैत्र नवरात्र की सप्तमी के दिन रात में  नगर वधुएं यहां घुघुंरु बांध के  नाच गाना करती है वो शिव जी के नटराज स्वरूप को साक्षी मानकर नृत्य करती है उनका ऐसा मानना है की इस जगह पर  नृत्य  करने से उनको अगले जन्म में नगर वधु नही बनाना पड़ेगा यह परम्परा अकबर के समय में  राजस्थान  के राजा सवाई मानसिंह ने शुरू की थी उन्हीं के समय से शुरु होकर आज तक चली आ रही है राजा सवाई मान सिंह ने ही 1585 में मणिकर्णिका घाट पर मंदिर का निर्माण कराया था  उसके बाद उन्होंने कार्यक्रम रखा महाश्मशान होने की वजह से कोई कलाकार  इस जगह पर  कार्यक्रम करने को तैयार नहीं हुआ तो  राजा सवाई मान सिंह ने नगर वधुओ को आमंत्रण भेजा और वो आने के लिए तैयार हो गई  और पूरी रात घुंघरू बांध कर नृत्य किया तब से ये परम्परा घाट पे हर साल निभाई जाती है ।

 महाश्मशान की चिता भस्म होली 

यहां फागुन महीने में रंगभरी एकादशी के अगले दिन चिता भस्म से होली खेली जाती है जो जलती चिताओं के बीच चिता की राख से खेली जाती है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब एकादशी के दिन बाबा भोले नाथ पार्वती जी के साथ गौना कराकर वापस आए तो देवगण और देवताओं ने उनके साथ रंग और गुलाल से होली खेली मगर भूत प्रेत पिशाच निशाचर आदि जीव जन्तु बाबा के साथ होली नहीं खेल पाए तो एकादशी के अगले दिन बाबा भोले नाथ स्नान के लिए मणिकर्णिका घाट पर आते है और भूत प्रेत पिशाच आदि अपने गड़ो के साथ चिता भस्म की होली खेलते है तब से हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन यहां हवन कुंड की राख और चिता भस्म और रंग और अबीर से यह होली खेली जाती है इसमें शामिल होना भक्त सौभाग्य की बात मानते है ।

पंचकोसी परिक्रमा 

बनारस में हर साल में एक बार शिवरात्रि के अवसर  पर पंचकोशी यात्रा होती है. जिसकी शुरुआत यहीं मणिकर्णिका कुंड से स्नान के बाद होता है. पंचकोसी परिक्रमा के पांच पड़ाव है  पहला मणिकर्णिका घाट, दूसरा कर्दमेशवा मंदिर, तीसरा रामेश्वर मंदिर, चौथा द्रौपदी कुंड शिवपुरी और पांचवा कपिल धारा है ।

मणिकर्णिका घाट सारे घाट में सबसे प्रसिद्ध भी और सबसे पुराना है इसे देखने विश्व भर के पर्यटक आते है यहां लगातार चलती चिताओं को देखते है ।

 अंतिम संस्कार की प्रक्रिया

घाट पर दिन भर अंतिम संस्कार होता रहता है लोग पूरी विधि विधान से प्रक्रिया को करते है लोग पहले शव को गंगा में स्नान कराते है फिर बाल बनवाते है फिर लकड़ी बड़ी नाप तौल कर खरीदी जाती है फिर चिता बनाई जाती है  फिर मणिकर्णिका घाट के डोम राजा के यहां से आग खरीदते है फिर चिता को आग लगाते है और अपने संबंधियों के मोक्ष की कामना करते है ।

ManikarnikaGhat

काशी में तीन राजा है एक तो स्वयं काशीराज भोलेनाथ महादेव दूसरे महाराजा काशी नरेश तीसरे मणिकर्णिका घाट के डोम राजा ।



कैसे पहुंचे मणिकर्णिका घाट वाराणसी 

यह घाट वाराणसी (काशी) का सबसे पुराना घाट है जो सिंधिया घाट और दशाश्वमेघ घाट के बीच में स्तिथ है यह वाराणसी कैंट स्टेशन से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आप कैंट स्टेशन से मैदागिन चौराहे और वहा से आगे चौक होते हुए गोदौलिया जाने वाले रास्ते पर विश्वनाथ जी मंदिर से कुछ पहले ही मणिकर्णिका घाट का रास्ता है मुख्य सड़क पर ही घाट जाने के रास्ते के दिखाने के लिए गेट बना हुआ हुआ है ।

आप यहां किसी भी घाट से नाव से या पैदल भी टहलते हुए जा सकते है ।

आप इस घाट पे करवट काशी मंदिर देख सकते है जो पूरी तरह सीधे नही तिरछे थोड़ा झुक कर खड़ा है जो पानी में डूबा रहता है लोग तो कहते है की पिसा की मीनार से भी ज्यादा झुका हुआ है  

आप जब भी बनारस वाराणसी आए तो यहां जरूर आए और देखे आपको एक अजीब सा आत्मीय अनुभव होगा आप भी देख सकेंगे धुएं के बीच  स्वर्ग के रास्ते में लोग कैसे अपनों का दाह संस्कार करते है ।


FAQ कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर 


Q1- मणिकर्णिका घाट कहा पर स्थित हैं ?


Ans- मणिकर्णिका घाट उत्तर प्रदेश के वाराणसी ( बनारस, काशी) जिले में स्थित एक घाट  हैं । 


Q2- मणिकर्णिका घाट क्यों प्रसिद्ध  हैं ? 



Ans- मणिकर्णिका घाट पर चौबीसों घण्टे चिताओं के दाह संस्कार होते है ऐसी मान्यता हैं की यहां पर दाह संस्कार होने पर मनुष्य की मुक्ति हो जाती है ।



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आप यह भी पढ़ें  आदि केशव घाट ,  पंचगंगा घाट , अस्सी घाट 


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