Skip to main content

Panch Ganga Ghat : पंचगंगा घाट वाराणसी की पौराणिक एवम ऐतिहासिक कहानी

पंच गंगा घाट 


जैसा कि हम पढ़ चुके है की वाराणसी (काशी) में कुल चौरासी घाट है इनमे से पांच ही मुख्यता प्रसिद्ध है ये घाट है पंचगंगा घाट  अस्सी घाट  , दशाश्वमेघ घाट , मणिकर्णिका घाट , और आदिकेशव घाट सबसे उत्तर में आदिकेशव घाट और सबसे दक्षिण में अस्सी घाट है

तो आज हम जानेंगे पंचगंगा घाट और इसके धार्मिक महत्व के बारे में

पंच गंगा घाट पांच नदियों के संगम पर बना हुआ है पौराणिक मान्यता है यहां पर गंगा नदी से यमुना , विशाखा, धूतपापा और किरण नदियो का संगम होता है ये नदिया गंगा नदी से  मिलती है और फिर धरती में समा कर विलुप्त हो जाती है इसलिए  इस घाट को पंच गंगा घाट कहते है क्यों की यहां पांच नदियों का संगम है इसलिए इस घाट का महत्व बढ़ जाता है क्यों की ये पांच नदियों के संगम पर है ।

इस घाट का  ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार , पहली बार रघुनाथ टंडन ने 1580 ईसवी में इसका पक्का निर्माण कार्य करवाया था उसके बाद  में   1780   सन में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने लाल पत्थरों से इसका निर्माण कार्य कराया था  घाट के पौराणिक एवम धर्मिक महत्व को देखते हुए 1965 में तत्कालीन राज्य सरकार ने घाट के निचले भाग को भी पक्का निर्माण करवाया था 


देव दिवाली की शुरुआत

 
देवताओं द्वारा शुरू की गई विश्व प्रसिद्ध देव दिवाली जिसे देखने विश्व भर के पर्यटक यहां आते है की शुरुआत भी 1785 ईसवी में महारानी अहिल्या बाई  के द्वारा 1000 दीपकों के स्तंभ को दीप प्रज्ज्वलित कर  मानव जन तक पहुंचाने का कार्य पंचगंगा घाट से ही आरंभ हुआ  था उसके बाद यह परंपरा  धीरे-धीरे समय के साथ काशी के 84 घाटों तक पहुंच गई बाद में महाराजा काशी नरेश विभूति नारायण सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर 1985 से देव दीपावली परंपरा को आगे बढ़ाया. 1991 में शुरू हुई गंगा सेवा निधि  दशाश्वमेघ घाट की गंगा आरती के बाद देव दीपावली ने वैश्विक स्वरूप ले लिया. घाटों का यह महापर्व विश्व स्तर तक पहुंच गया विश्च भर के पर्यटक यहां आज देव दिवाली देखने आते है और काशी की दिव्यता और भव्यता का आनंद लेते है और दियो के प्रकाश को गंगा जी में देख के असीम आनंद लेते हैं 

पांच नदियों के संगम के कारण ही इसे पंचगंगा घाट कहा जाता है 


आप यहां केवल गंगा नदी को देख सकते है बाकी नदिया गुप्त रूप से मिलती है और फिर धरती में समा जाती हैं  इस घाट पर स्नान आदि का विशेष महत्व है इसे पंच तीर्थ में स्थान दिया गया है और इसे पंचनद तीर्थ भी कहा जाता है 

कार्तिक पूर्णिमा को यहां स्नान और दान का विशेष महत्व है क्यों की यहां पे पाप नाशक पांच नदियों का संगम है पौराणिक मान्यता है कि पंचनद तीर्थ में कार्तिक पूर्णिमा को स्वयं तीर्थराज प्रयाग भी स्नान करते है कार्तिक पूर्णिमा पे स्नान के बाद विष्णु जी के रूप बिंदु माधव जी के दर्शन का विशेष महत्व और विधान है 

काशी खंड में पूरियो की स्थिति में इसे  काशी का कांचीपुरम (कांचीपुरी) क्षेत्र माना गया है इसलिए यहां स्नान का विषेश महत्व है 

यह घाट अपनी पवित्र स्तिथि के साथ साथ काफी इतिहास भी संजोए हुए है 

इसी घाट की सीढ़ियों पर गुरु रामानंद  जी निवास करते थे और  अपने  शिष्यों को शिक्षा देते थे यही इसी घाट पे ऊपर रामानंद संप्रदाय का मूल पीठ श्री पीठ स्थित है  और रामानंद मंदिर भी इसी घाट पर है 

इस घाट पर गुरु रामानंद  जी से कबीर दास जी  जो की सूफी संत थे ने भी   शिक्षा ली थी और ज्ञान पाया था और उनकी रचनाएं काफी प्रसिद्ध है  वो हिंदू और मुस्लिम दोनो समुदाय में समान रूप से लोकप्रिय हुए है 

मान्यता है की इसी घाट पर  बैठ कर महान कवि तुलसीदास ने विनय पत्रिका को लिखा था को लिखा था जो आध्यात्मिक जीवन को परिलक्षित करती है और ब्रज भाषा में लिखी हुई है

इस घाट पर एक भगवान विष्णु का एक विशाल  मंदिर था जिसे बिंदु माधव मंदिर कहा जाता था  जिसे आमेर (राजस्थान)के राजा  मान सिंह ने बनवाया था जो की बहुत बड़ा था और रामघाट तक फैला था  जिसे बाद में मुगल शासक औरंगजेब ने तुड़वा कर के  आलमगीर मस्जिद बनवाई थी मस्जिद आज भी घाट पर मौजूद है 

19 वी शताब्दी के महान संत श्री तैलंग स्वामी भी इसी घाट पर निवास करते थे गुरु रामानंद श्री मठ के अलावा यहां  श्री तैलंग स्वामी मठ भी यहां पर है  मठ में श्री तैलंग स्वामी द्वारा स्थपित पचास (50)
मन भार का शिव लिंग  आज भी मठ में पूजित है 

पंचगंगा घाट पर बिंदु विनायक , राम मंदिर , रामानंद मंदिर , धुतपापेश्वर शिव मंदिर , रेवेंटेश्वर शिव मंदिर  , श्री मठ , श्री तैलंग स्वामी मठ  आदि  मठ और मंदिर स्थित है 

घाट पर कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पंचगंगा स्नान का मेला लगता है जिसमे काफी श्रद्धालु स्नान करके रेत से निर्मित भीष्म प्रतिमा का पूजन करते है 

 पुराणों  मे वर्णित है की यदि कार्तिक माह में पूरे माह यहां स्नान किया जाए तो मनुष्य के सारे पाप धुल जाते है और यदि कोई पूरे महीने नही कर सकता तो सिर्फ   पंचगंगा घाट पर कार्तिक पूर्णिमा को लगाई एक डुबकी पूरे कार्तिक माह का फल प्रदान करती है और मनुष्य को मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति होती है कार्तिक के पूरे महीने यहां लोग कार्तिक महीने का स्नान करते है 
Panchgangaghatvaranasi



घाट श्रद्धालुओं में स्नान के लिए काफी प्रिय घाट है पापो के निवारण और समस्त दुखो से छुटकारा के लिए लोग यहां नहान में आते है और विधि विधान पूर्वक पूजा करते है 

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

Q1- पंच गंगा घाट कहा स्तिथ है ?
Ans- पंच गंगा घाट उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे बना हुआ घाट है ।
Q2- पंच गंगा घाट पे कितनी नदियों का संगम है ?
Ans- पंच गंगा घाट पर गंगा नदी से यमुना , विशाखा,                   धूतपापा और किरण नदियो का संगम होता है ।
Q3- तैलंग स्वामी मठ वाराणसी में  कहा स्तिथ है ?
Ans- तैलंग स्वामी मठ वाराणसी में पंच गंगा घाट पर है ।
Q4- वाराणसी में कुल कितने घाट है ?
Ans- वाराणसी में गंगा नदी के किनारे कुल चौरासी घाट बने            हुए है ।
Q5- पंच गंगा स्नान का मेला कब लगाता है?
Ans- पंच गंगा घाट पर कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पंचगंगा स्नान का मेला लगता है 


आप को हमारा ब्लॉग कैसा लगा कमेंट करके बताए जिससे हमको बेहतर करने की प्रेरणा मिलती रहे आप हमे मेल भी कर सकते है

आप यह भी पढ़ सकते है अस्सी घाट वाराणसी के बारे में 

धन्यवाद

Comments

  1. Informative, and this is needed for priligrims to have Bholenath dharshan.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Laal Bahadur Shastri : लाल बहादुर शास्त्री आइए जानते है भारत के दितीय लेकिन अदितीय प्रधान मंत्री के बारे में

लाल बहादुर शास्त्री लाल बहादुर शास्त्री आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे शान्त स्वभाव के दिखाने वाले शास्त्री जी अंदर से उतने ही मजबूत थे वो जब कोई निर्णय ले लेते तो उस पर अडिग रहते थे उनके कार्यकाल में ही भारत ने पाकिस्तान को जंग में हरा दिया था उनका दिया नारा जय जवान जय किसान  देश वासियों को देश भक्ति की भावना से भर दिया था नतीजा भारत ने 1965 के युद्ध में हरा दिया था और खुद पाकिस्तान ने भी ये नही सोचा था की वो हार जाएगा क्यों की उससे पहले चीन ने 1962 में भारत को हराया था  तो आइए जानते है भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्म, परिवार , बच्चे,  , स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और प्रधान मंत्री बनने और पाकिस्तान को हराने की कहानी हमारे ब्लॉग पोस्ट में तो आइए जानते है  जन्म   श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को   वाराणसी से  16 किलोमीटर   दूर , मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव  एक स्कूल शिक्षक थे। और माता राम दुलारी गृहणी थी , जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष ...

Natarajan Chandrasekaran CEO of Tata group न. चंद्रशेखरन की सैलरी कितनी है

Natarajan Chandrasekaran नटराजन चंद्रशेखरन  आज हम आपको अपने ब्लॉग पोस्ट में टाटा ग्रुप के चैयरमैन न. चंद्रशेखरन के बारे में बता रहे है तो आइए जानते है कौन है न.  चंद्रशेखरन Natarajan Chandrasekaran और क्या करते है टाटा ग्रुप में मेरे इस पोस्ट में  प्रारंभिक जीवन और शिक्षा  early life and education टाटा ग्रुप के चेयरमैन Natarajan Chandrasekaran  न. चंद्रशेखरन का जन्म वर्ष 1963 में तमिलनाडु राज्य में नमक्कल के नजदीक स्थित मोहनुर में एक किसान परिवार में हुआ था.एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं ।चंद्रशेखरन की प्राथमिक शिक्षा तमिल मीडियम स्कूल में हुई और वह अपने दो भाइयों के साथ मोहनूर नाम के गांव में 3 किमी पैदल चलकर स्कूल जाया करते थे। उनको फिर प्राथमिक शिक्षा के बाद प्रोग्रामिंग में लगाव हो गया और फिर   प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात चंद्रशेखरन ने कोयम्बटूर स्थित कोयम्बटूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में नामांकन कराया और यहां से एप्लाइड साइंस में स्नातक की डिग्री हासिल किया. तत्पश्चात वे त्रिची (वर्तमान में तिरुचिराप्पली) स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ...

Manikarnika Ghat : मणिकर्णिका घाट वाराणसी ( काशी ) जहां दिन रात जलती रहती है चिताएं

बनारस शहर या काशी को घाटों का शहर भी कहते है यह पे कुल 6 से 7 किलोमीटर की दूरी पर कुल 84 घाट है इन्ही घाटों में एक मोक्ष प्रदान करने वाला घाट भी है जहा दिन रात चौबीस घंटों चिताओं को जलाया जाता है जिसे Manikarnika Ghat : मणिकर्णिका घाट वाराणसी ( काशी ) जहां दिन रात जलती रहती है चिताएं  कहा जाता है तो आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से इस पोस्ट में । मणिकर्णिका घाट  मणिकर्णिका घाट काशी के 84 घाटों में सबसे पुराना और प्राचीन घाट है यह घाट अपनी निरंतर और सदियों से जलती चिताओं की आग के कारण जाना जाता है कहते है जिसका यहां अंतिम संस्कार होता है उसको सीधे  मोक्ष की प्राप्ति होती है  मणिकर्णिका घाट उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले और वाराणसी शहर में स्तिथ है आप वाराणसी कैंट से सीधे ऑटो लेकर वाराणसी चौक  चौराहे से आगे गलियों द्वारा जा सकते है । कहते है यहां कभी चिता की आग नही बुझती है हर रोज यहां 250 से 300 करीब शवों का अंतिम संस्कार होता है लोग शवों के साथ अपनी बारी का इंतजार करते है और फिर दाह संस्कार करते है ।  यहां पे आज भी शवों पर टैक्स की पुरानी परंपरा ज...