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Aadi Keshav Ghat : आदिकेशव घाट (काशी) वाराणसी पंच तीर्थ घाट की कहानी

आदिकेशव घाट वाराणसी

जैसा कि हम पहले ही बता चुके है की बनारस में करीब 84 घाट है पर इन सब में केवल 5 घाट ही ऐसे है जिनका महत्व कुछ ज्यादा ही है ये पांचों घाट पांच तीर्थ कहे जाते है दशाश्वमेघ घाट अस्सी घाट , आदिकेशव घाट ,  मणिकर्णिका घाट  , पंचगंगा घाट

इन्ही पंच तीर्थों में आज हम बात करेंगे आदिकेशव घाट की और इसके महत्व की इसके पौराणिक मान्यताओं की 

आदि केशव घाट  बनारस काशी में उत्तर दिशा में पहला घाट है जो कि   गंगा और वरुणा नदी के संगम पर बना हुआ है

आदिकेशव घाट वाराणसी  कैंट स्टेशन से 6 कि. मी. की दूरी पर राजघाट से  सरायमोहना  जाने वाले मार्ग में स्तिथ है इसी मार्ग में आगे चलाने पर कपिलधारा पड़ता है  जहां पंचकोषी परिक्रमा के यात्री विश्राम करते है यहां बहुत सारे धर्मशाला बने हुए है इसके बारे में आगे बात करेंगे 

अभी आदि केशव घाट के बारे में जानते है यह घाट सबसे पहला घाट और यह शांत इलाके में है कलांतर में शहर का विकास दक्षिण दिशा की तरफ ज्यादा हुआ है

निर्माण 

आदिकेशव घाट और आदि केशव मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं सदी में गड़वाल वंश के राजाओं ने करवाया था  घाट के समीप ही गड़वाल शासकों का किला भी था इनके दानपत्रों में घाट पर उपनयन संस्कार , नामकरण संस्कार , मुंडन संस्कार, और अन्य संस्कार किए जाने का जिक्र भी है 

अठारहवीं शताब्दी में बंगाल की महारानी भवानी ने घाट का पक्का निर्माण कराया था। परन्तु कुछ वर्षो के पश्चात यह क्षतिग्रस्त हो गया जिसका पुनः निर्माण मराठा काल में ग्वालियर महाराजा सिंधिया के दीवान माणो जी ने 1806 ई. में कराया था

सन् 1985 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का मरम्मत कराया गया एवं वर्तमान में इसकी स्वच्छता को बनाये रखने के लिये सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।

AadiKeshavGhat


 पौराणिक महत्व

मान्यता है ब्रह्मलोक निवासी देवदत्त को शर्त अनुसार ब्रम्हा जी ने काशी का राजा नियुक्त कर दिया उनके गद्दी पर बैठने के बाद   सारे देवता मंदरांचल पर्वत पर चले गए और साथ में शिव जी को भी जाना पड़ा पर शिव जी को काशी बहुत प्यारी थी , वो इससे दूर नहीं रह पा रहे थे और उन्होंने बारी बारी से देववताओ के भेजना शुरू किया ताकि काशी को फिर से पा सके लेकिन जो देवता गण यहां आते यही के रह जाते फिर उन्होंने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से आग्रह किया तो लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु काशी के लिए चले और वरुणा और गंगा नदी के संगम तट पर आए और इस जगह पे अपने पैर धोए और जो वस्त्र पहने वह पहन कर ही इस संगम तट पर स्नान किया और तल्लेक्य व्यापनी मूर्ति को समाहित करते हुए अपनी काले रंग की आकृति की मूर्ति को स्थापित की और उसका नाम आदिकेशव रखा और फिर विष्णु जी  देवदास के पास गए और उनको समझा कर ब्रह्म  लोक भेजा और शिव जी को काशी नगरी पुनः दिलाई । और कहा है की जो भी इस क्षेत्र में आदि केशव जी  पूजन आदि करेगा  वो सभी दुखी से रहित होकर मोक्ष की प्राप्ति करेगा ।

अविमुक्त अमृतक्षेत्रेये अर्चनत्यादि केशवं ते मृतत्वं भजंत्यो सर्व दु:ख विवर्जितां

आदिकेशव  मंदिर होने के कारण ही इस घाट का नाम आदिकेशव घाट पड़ा है ।

 विष्णु जी के पैर पड़ने से इस जगह को विष्णु पादोदक के नाम से भी जाना जाता है। 

यहां पे आदि केशव  मंदिर के अलावा यहां घाट पर संगमेश्वर महादेव मंदिर , चिंताहरण गणेश जी मंदिर , पंच मंदिर  जिसमे गणेश जी विष्णु जी  ,शिव जी  ,दुर्गा जी और सूर्य देव अपने वाहन पर विराज मान है ।

आदिकेशव मंदिर का रंगमंडप लालपाषाण के स्तंभों से समृद्ध है बाहर की दीवारों पर भी सुंदर कारीगरी है अंदर गर्भगृह में आदिकेशव जी विद्यमान है  उनके दाई ओर केशवादित्य विराजमान है  दूसरे मंदिर में ज्ञान केशव की मूर्ति स्थापित है।

ऐसा माना जाता है संगमेश्वर शिव लिंग स्थापना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी  इनका मान चतुर्दश आयतनो में होता है स्कंध पुराण के अनुसार इनका दर्शन मात्र करने से सारे पाप कट जाते है ।

 नीचे की तरफ भगवान वामन का मंदिर है भादो में वामन द्वादशी के दिन स्नान के श्रद्धालु यहां दर्शन करते है ।

मत्यस्यपुराण के अनुसार इस घाट को काशी के प्रमुख पांच घाट तीर्थो में स्थान प्राप्त है एवं काशी का प्रथम विष्णु तीर्थ माना जाता है।

काशी की पंचतीर्थी एवं पंचकोशी यात्रा इस घाट पर स्नान एवं दर्शन के पश्चात शुरू होती है श्रद्धालु यही संकल्प लेते है और आगे  की यात्रा शुरू     जेड करते हैं जो मणिकर्णिका घाट पर जाकर संकल्प छुड़ाने के साथ समाप्त होती है ।

यहां भाद्र माह के शुक्ल द्वादशी घाट को वारूणी पर्व का मेला आयोजित होता है जिसमें विभिन्न सास्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता है ।

पूस मास में अंतगृही मेला, चैत्र में वारुणी मेला में श्रद्धालु यहां संगम स्नान कर आदिकेशव के दर्शन करते हैं। भादो में वामन द्वादशी के दिन भी स्नान होता है ।

ऐतिहासिक महत्व 

आदिकेशव मंदिर को 1857 की क्रांति में ब्रिटिश सेना ने  कब्जे में ले लिया था और इसमें अपना  हेडक्वार्टर बना लिया था। किसी को मंदिर में अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। उस वक्त के पुजारियों ने उस वक्त के कमिश्नर के समक्ष यह मामला रखा। उनके ऑर्डर से मंदिर में एक पुजारी को पूजा करने की अनुमति मिली। उसका शिलालेख भी है। 

अतः आप यदि वाराणसी आते है और शांत स्थान में घूमना चाहते है तो इस जगह जरूर आए इसी घाट के बगल में प्रधान मंत्री मोदी जी द्वारा निर्मित नमो घाट  भी है जो खिड़कियां घाट के पास है जो काफी अच्छा टूरिस्ट स्पॉट हो गया है 

इस घाट के बगल में पुरातत्व विभाग का लाल खा का रौजा पार्क भी है बगल में राजघाट है  कुल मिलाकर यह एक बार देखने लायक जगह है 

आप भी यहां एक बार जरूर आए 


FA&Q 

कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

Q1- आदिकेशव घाट कहा है ?

Ans- आदिकेशव घाट उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में उत्तर दिशा में पहला घाट है ।

Q2- आदि केशव घाट किसके संगम पे बना है ?

Ans- आदि केशव घाट वरुणा नदी और गंगा नदी के संगम पर बना है ।

Q3- आदि केशव मंदिर का निर्माण किसने कराया था ?

Ans- आदिकेशव घाट और आदि केशव मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं सदी में गड़वाल वंश के राजाओं ने करवाया था ।

Q4- वाराणसी के पांच तीर्थ घाट कौन कौन से है ?

Ans- ये पांच  घाट पांच तीर्थ कहे जाते है  दशाश्वमेघ घाट , अस्सी घाट , आदिकेशव घाट ,  मणिकर्णिका घाट  , पंचगंगा घाट ।

Q5- आदि केशव मंदिर किसको समर्पित है ?

Ans- आदिकेशव मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है कहते यहां पूजा करने से मनुष्य हर प्रकार के पाप से छूट जाता है ।


डिस्क्लेमर


सारी घटनाएं पौराणिक है हम किसी घटना के लिए। दावा नही करते है 

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