Annpurna Mandir Varanasi अन्नपूर्णा मंदिर वाराणसी
जैसा की हम पहले से ही जानते है की वाराणसी ( काशी) शहर अपने मंदिरो के शहर होने के लिए प्रसिद्ध है यह हर हर जगह कोई न कोई पवित्र व प्रसिद्ध मंदिर है इसी क्रम में आज हम जानेंगे महादेव की नगरी में एक पवित्र मंदिर मां अन्नपूर्णा मंदिर वाराणसी काशी के बारे में ऐसी मान्यता है की काशी में अन्नपूर्णा जी को स्वयं महादेव जी लेकर आए थे ताकि यहां कोई भूखा न सोए तो आइए जानते है माता अन्नपुर्णा देवी मंदिर के बारे इस ब्लॉग पोस्ट में तो आइए जानते कहा है मंदिर और कैसे पहुंचे और क्या प्रसाद है माता रानी के क्या पौराणिक कथा है अन्नपूर्णा जी के काशी में होने की तो आइए जानते है माता रानी के बारे में
अन्नपूर्णा मंदिर वाराणसी (काशी)
काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ कदम की दूरी पर मां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है
पौराणिक मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि काशी में कोई भी भूखा नही सोता है क्यों कि मां अन्नपूर्णा स्वय यह की खान पान व्यवस्था देखती है। जब आप काशी विश्वनाथ दर्शन करे तो अन्नपूर्णा जी के दर्शन जरूर करे प्रसाद में यहां चावल मिलता है इसको आप अपने पास रख सकते है।
धनतेरस पे बटता है मां का खजाना
धनतेरस के दिन धन त्रयोदशी के मौके पर अन्नपूर्णा मंदिर में विशेष पूजन किया जाता है। धनतेरस (Dhanteras) पर भक्त मां अन्नपूर्णेश्वरी के स्वर्णमयी प्रतिमा के दर्शन करते हैं। साल में सिर्फ चार दिन धनतेरस से अन्नकूट तक देवी के इस स्वरूप का दीदार भक्तों को होता है। दर्शन करने आने वालों को मां के खजाने के रूप में चावल, धान का लावा और सिक्का (अठन्नी) दिया जाता है। यह सिक्का भक्तों के लिए कुबेर से कम नहीं है।
मान्यता है कि देवी के इस खजाने को जो भी भक्त पाता है उसे वह अपने लॉकर में रखता है। उस पर खजाने वाली देवी की कृपा बना रहती है और उसे धन-धान्य की कमी नहीं होती है। यही वजह है कि खजाने वाली इस देवी के दर्शन और खजाने के प्रसाद के लिए देश भर से भक्त काशी आते हैं। सुबह से शाम का प्रसाद बटता है जिसको पाने के लिए भक्तो की लंबी लाइन लगती है ।
मंदिर में सुबह 9 बजे से लेकर शाम 8 बजे तक भंडारा चलता है तो आप प्रसाद जरूर चखे
आइए जानते है अन्नपुर्णा देवी के बारे में कुछ और बातें
अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री।
मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है। ये अन्नपूर्णा ही शाकुम्भरी देवी के नाम से विख्यात है जहाँ उत्तर प्रदेश मे एक छोर पर माँ अन्नपूर्णा विराजमान है तो वहीं दूसरे छोर पर सहारनपुर जिले मे शिवालिक पर्वत पर माँ शाकम्भरी विराजमान है।
शिव की अर्धांगनी :
कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत् उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बडी रोचक है। भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात् उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलास पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे। इसी कारण वर्तमान समय में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ।
भक्त वत्सल :-
स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। 'ब्रह्मवैवर्त्तपुराण' के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। परन्तु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है। श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता है। अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है। ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं।
अन्नपूर्णा देवी मंदिर का भंडारा
मंदिर में दर्शन करने के पश्चात भक्त माता रानी के भंडारे का प्रसाद ग्रहण करते है जो अन्नपूर्णा मंदिर के बगल में ही संचालित होता है उस जगह को अन्नक्षेत्र कहते है जहा भक्तो को निशुल्क प्रसाद ग्रहण कराया जाता है
मान्यता हैं मां अन्नपूर्णा देवी की कृपा से कोई काशी में भूखा न सोए इसी उद्देश्य से यहां प्रतिदिन भंडार आयोजित होता है जो पूरे सात दिन और पूरे महीने निरंतर चलता है
यह हर रोज भंडारा होता है सुबह 9:30 बजे से ही नास्ते के साथ शुरू हुआ भंडारा दोपहर में खाने और फिर शाम के खाने के बाद रात्रि 8:30 बजे तक चलता है
भोजन में दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय दोनो वयंजन परोसे जाते है जिनमे चावल दाल सांभर मिठाई और पापड़ सब्जी पूड़ी आदि होती है
भंडारे की संपूर्ण वयवस्था मां अन्नपूर्णा ट्रस्ट देखता है जो की भक्तो द्वारा दी गई सहायता राशि से संचालित होता है यदि आप यहां चाहे तो ट्रस्ट में दान कर सकते है
भंडारा सातो दिन नियमित चलता है और कार्यकर्ता उत्साह पूर्वक सारे भक्तो को प्रसाद का वितरण करते है और भक्त भी आराम से यह लगी मेजों पर बैठ कर प्रसाद ग्रहण करते हैं हा प्रसाद खाने के बाद अपना पत्तल डस्टबिन में जरूर डाल दे और अन्न को खराब न करे कार्यकर्ता यहां साफ सफाई का विशेष ख्याल रखते है
तो आप दर्शन कर प्रसाद जरूर ग्रहण करे माता का आशीर्वाद पाए
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर
Q1- माता अन्नपूर्णा का मंदिर वाराणसी में कहा पर है ?
Ans- माता अन्नपूर्णा का मंदिर वाराणसी काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर के ठीक बगल में स्तिथ है आप विश्वनाथ जी के दर्शन कर इनके दर्शन कर सकते है
Q2- अन्नपुर्णा जी का खजाना कब बटता है ?
Ans- धनतेरस (Dhanteras) पर भक्त मां अन्नपूर्णेश्वरी के स्वर्णमयी प्रतिमा के दर्शन करते हैं। साल में सिर्फ चार दिन धनतेरस से अन्नकूट तक देवी के इस स्वरूप का दीदार भक्तों को होता है। दर्शन करने आने वालों को मां के खजाने के रूप में चावल, धान का लावा और सिक्का (अठन्नी) दिया जाता है। यह सिक्का भक्तों के लिए कुबेर से कम नहीं है
Q3- अन्नपुर्णा मंदिर कब से कब तक खुलता है ?
Ans- मंदिर सुबह से ही दर्शन को खुल जाता है जो रात्रि 9 बजे तक खुला रहता हैं
Q4- अन्नपूर्णा जी की पूरी कहा है ?
Ans- पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार कलयुग में मां अन्नपूर्णा जी की पूरी काशी है पर ये सम्पूर्ण जगत का पालन पोषण करती है
Q5- अन्नपुर्णा मंदिर में भंडारा कब से कब होता है ?
Ans- अन्नपुर्णा मंदिर में भंडार रोज 9:30 बजे के बाद शुरू होकर रात्रि 8 बजे तक चलता है
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धन्यवाद
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