विश्वकर्मा पूजा के बारे में
भारत व्रत और त्योहारों का भी देश के हर हिस्से में रोज कोई न व्रत और धरती का पहला इंजीनियर ऐसे नहार होता है इन्ही सब का अपना अलग अलग महत्व और और इन व्रत और त्यौहारों के देवता भी अलग होते इन्हीं सब में एक त्यौहार या Vishvkarma Puja विश्व कर्मा जयंती पे विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाई जाती है ये शिल्पकाधर्ध शिल्पियों जो किसी भी चीज़ को बनाते हैं जैसे मशीनी उपकरण गाड़ी घोड़ा बढ़ई का काम करने वाले मतलब जो मशीन का काम करते हैं वह धरती के पहले इंजीनियर विश्व कर्मा जी को उनके जन्मदिन पर जरूर पूजते हैं भगवान विश्वकर्मा को धरती का पहला इंजीनियरऐसे ही नहीं कहा जाता उन्होंने जिन चीजों का निर्माण किया वो सारी अकल्पनीय चीजें थी जैसे रावण की सोने की लंका महर्षि द तईप ये हड्डियों से बराज आइए जानते हैं कौन थे भगवान विश्वकर्मा
भगवान विश्वकर्मा के बारे में
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार है पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार श्रीस्ति के प्रारंभ में भगवान विष्णु की नाभी से ब्रम्हा जी उत्पन हुए ब्रम्हा जी के पुत्र थे धर्म , धर्म और वास्तु के सातवे पुत्र वास्तुदेव वास्तु देव को शिल्पज्ञान का आदि प्रवर्तक माना जाता है , वास्तुदेव की पत्नी थी अंगिरसी वास्तुदेव और अंगिरसी की संतान थे विश्वकर्मा जी विश्वकर्मा जी जन्म के समय से वास्तु कला में पारंगत थे अपने पिता की तरह विश्वकर्मा जी भी वास्तुकला में अदितिय थे उनके जैसा शिल्पकार और कोई नही हुआ है उनके जैसा
शिल्पकार कोई दूसरा नहीं हुआ है इन्ही विश्वक्रम भगवान के जन्म दिन को विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाया जाता है
कब मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती
कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा जी का जन्म आश्विन मास की कृष्ण पक्ष में हुआ था कुछ मतों में भाद्रपद मास की अंतिम तिथि में हुआ है बाद में सभी मतों अनुसार 17 सितंबर को मनाया जाता है इसी दिन इनकी पूजा पाठ होता है शिल्प कार लोग इस दिन इनकी पूजा करते है
भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित अस्त्र शस्त्र व भवन महल
भगवान विश्वकर्मा ने अनेक अस्त्र शस्त्रों और किला महलों का निर्माण कार्य किया इनमे रावण की सोने की लंका भगवान शिव का त्रिशूल नारायण का चक्र इंद्र जी के लिए महर्षि धधीची के हड्डियो को गलाकर कर ब्रज का निर्माण किया था पुराने समय में निर्मित सारी राजधानियां विश्वकर्मा जी द्वारा ही बनाई गई थी सतयुग का स्वर्ग द्वापर की द्वारका त्रेता युग में लंका और पुष्पक विमान भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही बनाई गईं थीं जिसे बाद में रावण ने मांग लिया था ऐसी बहुत सी चीजे जो अक्लपनीय थी उनका निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया था पांडवो का इंद्रप्रस्थ महल भगवान कृष्ण के कहने पर सुदामा के लिए महल का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने एक रात में ही कर दिया था पुराणों के अनुसार सारी राजधानियों के शिल्पकार विश्वकर्मा जी ही थे भगवान यमराज कालदंड विश्वकर्मा जी ने ही किया था भगवान कृष्ण के लिए द्वारका नगरी विश्वकर्मा जी ने ही बनाई थी भगवान विश्वकर्मा जी श्रृष्टि में रचनाकर कार की मान्यता है जब लंकापुरी जल गई थी तो विश्वकर्मा जी ने ही उसका पुनः निर्माण रावण के कहने पर किया था
जिस रथ पर बैठकर महादेव ने विद्युन्माली, तारकाक्ष और कमलाक्ष का वध किया था, उस रथ का निर्माण करने वाले भगवान विश्वकर्मा ही थे। महादेव का यह रथ सोने का था जिसके दाहिने चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। इसके अलावा दाहिने पहिए में 12 और बाएं पहिए में 16 आरे थे।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जगनाथ पूरी का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा जी ने ही किया था इसके अलावा उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था
विश्वकर्मा कितने प्रकार के होते हैं
विश्व कर्मा जी एक हिंदू भगवान थे भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पाँच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है।
विश्वकर्मा पूजा पे किसकी पूजा होती है
इस दिन शिल्प के कार्यों से जुड़े लोग अपने औजारों की और भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है कल कारखानों में तथा वाहनों का पूजा किया जाता है इस दिन को लोहे के सामानों की विशेष पूजा होती है लोग जो इंजीनियरिंग से , कारखानों से ,और निर्माण कार्य bhan निर्माण , मशीनों के काम से जुड़े होते है इस दिन अपने कार्यालय को साफ सफाई करके भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र रख करके अपने यंत्रों के साथ विश्वकर्मा जी की पूजा करते है इस दिन लोग अपने औजारों का प्रयोग नहीं करते है और कल कारखाने आदि बंद रख के केवल उत्सव मनाते है
उत्तर प्रदेश,बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में विधि विधान से मूर्ति स्थापित करके पूरे हर्षों उल्लास से उनकी आराधना की जाती है और उनकी पूजा की जाती है
पूजा विधि और समय
शुभ मुहूर्त। 17 सितंबर को
सुबह का मुहूर्त सुबह में 7:30 से 9:10 तक
दोपहर का मुहूर्त दोपहर में 1:48 से 3:20 तक
पूजा सामग्री
गंगा जल , रोरी , हल्दी , कुमकुम, दुबा, पान , सुपारी, अगरबत्ती , धूप , माला ,फूल , अक्षत, मिठाई ,फल , फूल , माला , कालवा , जनेऊ, विश्वकर्मा जी का फोटो या मूर्ति , कपूर ,घी ,आरती दानी , चूरन ,बताशा ,चना , अगरबाती , दूध , दही , फल में पांच फल कोई भी ले
पूजा कैसे करें
इस दिन सुबह में कार्यालय या कार्य क्षेत्र की साफ सफाई करके गंगा जल छिड़क कर जगह को पवित्र करे और फिर चौकी लगा कर पीला या सफेद कपड़ा बिछा कर उसमे प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करे फिर ॐ श्री विश्वकर्मा शिल्पी ईहागच्छ इह सुपृतिष्ठो मंत्र का जाप करे फिर रोरी, हल्दी,कुमकुम, लगाकर अक्षत लगाकर माला पहनाए फिर फूल पान , सुपारी , नारा (कलेवा) ,लौंग, जनेऊ,फल ,मिठाई आदि चढ़ाए दही दूध से चरना मृत बनाए और भगवान को चढ़ाए
फिर विधि विधान से अपने काम के सारे उपकरणों को का पूजन करे उनको कलेवा बंधे और रोरी लगाए फिर पूजा करे और पूजा के बाद आरती करते हुए भगवान से अपने उज्जवल भविष्य की कमना करे फिर इस दिन औजार न उठाए और विश्वकर्मा जी से सदैव कार्य में तरक्की की कामना करे और मन को पूरा विश्वकर्मा जी लगाए और आगे तरक्की की कामना करे और बोले की भगवान जैसे आप ने सारे लोगो को बसाया और बनाया वैसे हमको भी तरक्की दे
आप को मेरा ब्लॉग कैसा लगा कमेंट में जरूर बताएं आप के विचार हमको अच्छा करने को प्रेरित करते है
आप यह भी पढ़ें पेनी शेयर , संकट मोचन मंदिर
आप मुझे कभी भी कुछ पूछ सकते है
Comments
Post a Comment