हमारा देश त्योहारों और पर्वो का देश है इसी कड़ी में 7 दिसंबर बुधवार को दतात्रेय भगवान की जयंती मनाई जाएगी । हिंदू धर्म पंचांग के अनुसार हर साल मार्गशीर्ष महीना की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। इस बार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि 7 दिसंबर को है और इसी दिन भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाएगी । पौराणिक आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय भगवान शंकर, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्रााजी तीनों का मिलाजुला रूप है। आइए जानते हैं विस्तार से दत्तात्रेय जयंती 2022: कौन है भगवान दत्तात्रेय : दत्तात्रेय जयंती क्या है
दत्तात्रेय जयंती 2022 में कब है कौन है भगवान दत्तात्रेय
दत्तात्रेय भगवान और दता भगवान ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी माता अनसूया के पुत्र थे ।भगवान दत्तात्रे को भगवान दत्ता और परब्रह्म मूर्ति सद्गुरु, दत्तात्रेय भगवान, दत्ता भगवान, श्री गुरु देव दत्त, गुरु दत्तात्रेय आदि नामों से भी जाना जाता है भगवान दत्तात्रेय भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा जी के अंश है। पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय रोज सुबह काशी (वाराणसी) में स्नान करते थे । काशी में मनिकर्णिका घाट पर दत्ता भगवान की चरण पादुका रखी है जो दर्शनीय स्थान है। मुख्य चरण पादुका कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है । दत्तात्रेय भगवान को दक्षिण चरण इस वर्ष मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि 7 दिसंबर को है अतः 7 तारीख को भगवान दता का जन्म दिवस मनाया जायेगा।
दत्तात्रेय जयंती को दत्ता जयंती, दत्त जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है।
दतात्रेय भगवान के गुरु कौन कौन है
भगवान दतात्रेय ने कुल चौबीस गुरु बनाए थे ।
कौन है भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु
भगवान दत्तात्रेय का मानना था कि जहां से भी शिक्षा मिले उसे तुरंत ग्रहण लेना चाहिए। दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरु थे – धरती (पृथ्वी), जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुंवारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी और भृंगी कीट थे। उन्होंने अपने सभी 24 गुरुओं से कई अच्छी शिक्षाएं सीखी और उनका उपयोग किया ।
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि जाने
- दत्तात्रेय जयंती पूर्णिमा तिथि को पड़ती है तो इस दिन नहान और दान पुण्य का विशेष महत्व होता है ।
- दत्तात्रेय जयंती के दिन सुबह भोर में उठकर स्नान और फिर साफ वस्त्र धारण करने के पश्चात व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद दत्त पादुका की पूजा करना शुभ और मंगलकारी होता है।
- सबसे पहले दत्तात्रेय जी को गंगाजल से स्नान कराएं ।
- दत्तात्रेय जी को पूजा में केवल सफेद रंगों के ही फूल चढ़ाएं।
- इसके पश्चात दत्तात्रेय जी को धुप दीप नैवेद्द आदि से पूजा अर्चना करें मीठे का भोग लगाएं और पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें ।
- दत्तात्रेय जी के मन्त्रों और स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए।
- दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में भी पूजा जाता है, गुरु के रूप में पूजन करना अत्यंत ही मंगलकारी और फलदाई होता है।
दत्तात्रेय जी का पूजन और दत्तात्रेय जयंती 2022 व्रत करने के लाभ
- पुराणों और उपनिषद के अनुसार, दत्तात्रेय जयंती की पूर्व संध्या पर भगवान दत्तात्रेय के लिए व्रत और पूजा करने वाले भक्तों को उनका आशीर्वाद और कई तरह के लाभ होते हैं।
- भक्तों को उनकी सारी मनोकामना की प्राप्ति होती है।
- दत्तात्रेय जयंती पे दत्तात्रेय भगवान का पूजन करने पर भक्तो को सर्वोच्च ज्ञान के साथ-साथ जीवन के उद्देश्य,लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।
- दत्तात्रेय जी के पूजन से अज्ञात भय से छुटकारा मिलता है।
- दत्तात्रेय जी के पूजन से भक्तो हानिकारक ग्रहीय कष्टों का निवारण
- दत्तात्रेय जी के पूजन से मानसिक कष्टों के उन्मूलन और पैतृक मुद्दों से भी छुटकारा मिलता है।
- दत्तात्रेय जी के पूजन और व्रत करने से जीवन में नेक रास्ते पाने में मदद मिलती है।
दत्तात्रेय जी के पूजन का मंत्र
दत्तात्रेय जयंती 2022 के मंत्र
ॐ दिगंबराय विद्महे योगिश्रारय् धीमही, तन्नो दतः प्रचोदयात ।।
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः ।।
जटाधरं पाण्डुरङ्गं शूलहस्तं कृपानिधिम् ।
सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ॥
शुभ मुहूर्त और पूजा का समय
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 8 बजे से और रात्रि 8 बजे तक
तो पूजा करने का मुहूर्त दिन भर है और आप दिन भर पूजा कर सकते है ।
दत्तात्रेय जयंती 2022 प्राकट्य की कहानी
दत्तात्रेय भगवान के जन्म की कथा
पुराणों में और शास्त्रों में लिखित वर्णन के अनुसार माता अनुसूया महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी थी, उनके पतिव्रत धर्म की चर्चा तीनों लोक में होने लगी। जब नारद भगवान ने माता अनुसूया के पतिधर्म की सराहना तीनों देव की पत्नियों से की तो देवी पार्वती,लक्ष्मी और सरस्वती ने अनुसूया की परीक्षा लेने की ठान ली। सती अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेवियों के अनुरोध पर तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर भगवान पृथ्वी लोक पहुंचे। अत्रि मुनि की जब आश्रम में नही थे तो तीनों देव साधु के भेष में अनुसूया के आश्रम में पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन करने की इच्छा प्रकट की। देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई। परन्तु तीनों देवताओं ने माता के सामने यह शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र (बिना कपड़े के) होकर भोजन कराए तो वो भोजन स्वीकार करेंगे । इस पर माता को संशय हुआ। इस संकट से निकलने के लिए उन्होंने ध्यान लगाकर जब अपने पति अत्रिमुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और भोले नाथ जी खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रिमुनि को ध्यान करके अत्रिमुनि जी के कमंडल से जल निकलकर तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने शर्त के मुताबिक उन्हें भोजन कराया। तीनो देव वातस्लाय प्रेम में वहीं बहुत दिन तक वहीं रुक गए, वहीं बहुत दिन तक पति के वियोग में तीनों देवियां व्याकुल हो गईं। और उन्होंने नारद मुनि से देवो के बारे में पूछा तब नारद मुनि ने उन्हें पृथ्वी लोक का वृत्तांत सुनाया। तीनों देवियां पृथ्वी लोक पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसके बाद तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म देवों को एकसाथ बाल रूप में दत्तात्रेय के रूप में तीनो देव को अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया और तीनो देव अपने लोक चले गए और दतात्रेय भगवान के रूप में माता अनसूया को प्राप्त हुए ।
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