शारदीय नवरात्रि
नवरात्रि पर्व प्राचीन काल से मनाया जाता है यह पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएँ हैं नवरात्रि एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जिसे पूरे भारत में बनाया जाता है वैसे तो नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है लेकिन दो बार के नवरात्रों को गुप्त नवरात्रि माना जाता है और भक्तगण विशेष रूप से चैत नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि को विशेष रूप से मनाते शारदीय नवरात्रि अशविन मास की कृष्णपक्ष अमावस्या से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलती है जो 10 दिन की होती है इस बार शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हो रही है 4 अक्टूबर तक रहेंगी इसमें माँ दुर्गा के नव रूपों केउपासना और दर्शन और पूजा पाठ का विधान है भक्तगण कलश स्थापना के बाद विधि विधान से माँ दुर्गा के नौ रूपों का पूजन करते हैं और 9 दिन जागरण और पूजा करते हैंभक्त नौ दिनों के दौरान उपवास रखकर और देवी दुर्गा से उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं इस त्योहार को मनाते हैं कुछ लोग हुए नौ दिनों तक उपवास रखकर इस त्योहार को पूरा करते हैं जबकि अन्य ने रात्रि के पहले दो या अंतिम दो दिनों के लिए उपवास भी रखा जा सकता है ज्यादातर लोग पहले या दूसरे या फिर अंतिम नवरात्रि को व्रत रखते हैं पुराण और शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा करते समय विशेष ध्यान और नियमों की जरूरत होती है
नवरात्र का यह पर्व उत्तर भारत के कई राज्यों सहित पश्चिम बंगाल में इस पर्व का काफी भव्य आयोजन देखने को मिलता है।
क्यों मनाई जाती है शारदीय नवरात्रि
जगत जननी मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का वध
पौराणिक मान्यताओं की बंगाल में नवरात्रि की शुरुआत महालया आश्विन अमावस्या से हि शुरु हो जाता है मान्यता है इसी दिन मां दुर्गा ने धरती पर अवतार लिया था क्यों की उस महिषासुर नाम का एक दैत्य था ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान पाकर वह देवताओं को सताने और उन आक्रमण करने लगा था महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता ब्रह्मा जी, विष्णु जी, भगवान शिव के पास गए। इसके बाद तीनों देवताओं ने आदि शक्ति का आवाहन किया। भगवान शिव और विष्णु के क्रोध व अन्य देवताओं से मुख से एक तेज प्रकट हुआ, जो नारी के रूप में बदल गया। अन्य देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इसके बाद देवताओं से शक्तियां पाकर देवी दुर्गा ने महिषासुर को ललकारा। महिषासुर और देवी दुर्गा काबहुत भीषण युद्ध हुआ जो 9 दिनों तक लगातार चला। फिर दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। मान्यता है कि इन 9 दिनों में सारे देवी देवताओं ने रोज देवी की पूजा-आराधना कर उन्हें बल प्रदान किया। तब से ही नवरात्रि का पर्व मनाने की शुरुआत हुई पर आज भी नवरात्रि पर बहुत धूमधाम से मनाया जाता है लोग 9 दिन देवी की पूजा करते हैं दिन और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं
प्रभु श्रीराम से जुड़ी पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब श्रीरामजी को वनवास हुआ था और उसी बनवास के दौरान रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था और लंका में ले जाकर रखा था और फिर जब माता सीता को रावण के लंका से आजाद कराने के लिए लंका पहुंचे और उनके और रावण के बीच युद्ध शुरू हो गया तो उन्होंने भी विजय का वरदान पाने के लिए देवी दुर्गा की आराधना की थी कहा जाता है रावण पर विजय पाने के लिए श्री राम जी ने देवी दुर्गा का अनुष्ठान किया। ये अनुष्ठान लगातार 9 दिन तक चला। अंतिम दिन देवी ने प्रकट होकर श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया। प्रभु श्रीराम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक देवी की साधना कर दसवें दिन रावण का वध किया था। तभी से हर साल नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रि मनाने की विधि
शारदीय नवरात्रि के शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हो रही है दो 4 अक्टूबर तक चलेगी सुब्रत रखने का मुहूर्त तो सुबह से ही शुरू हो जाएगा आइए जानते हैं कलश स्थापना का मुहूर्त
कलश स्थापना का मुहूर्त
प्रातः 06.18 से प्रातः 07.50
कुल अवधि: 01 घण्टा 32 मिनट
सामग्री
कलश, मौली, आम के पत्ते का पल्लव (5 आम के पत्ते की डली), रोली, गंगाजल, सिक्का, गेहूं या अक्षत, मिट्टी का बर्तन, शुद्ध मिट्टी, गेहूं या जौ, मिट्टी पर रखने के लिए एक साफ कपड़ा, साफ जल, कलावा , पीतल या मिट्टी का दीपक, घी, रूई बत्ती, रोली या सिंदूर, अक्षत
कलश स्थापना
शारदीय नवरात्रि मनाने की शुरुआत अपनी उन्नत तरीके से कर सकते हैं आपको तैयारी पहले दिन से करनी है जो कलश स्थापना से शुरू होती है कलश स्थापना के लिए जो नवरात्रि का पहला दिन है, प्रथम तिथि है, उस दिन सुबह जल्दी उठ करके स्नान करें।
स्नान करने के बाद शुद्ध और साफ कपड़ा(वस्त्र) धारण करने के बाद, आपने अपने घर में बने मंदिर या पूजाघर या फिर घर के किसी भी पवित्र जगह पर गंगा जल से धुलकर गंगा जल उपलब्ध न हो तो पानी से भी धूल सकते हैं वहा पर आपको एक लकड़ी की चौकी रखनी है उस लकड़ी की चौकी के ऊपर आपने एक लाल रंग का वस्त्र बिछा लेना है, अब आपने उसके ऊपर भगवतीदेवी या शेरोवाली माता या जो आपकी कुल देवी है उनका चित्र आप को रखना है इसके बाद उनको चुनरी पहनानी है अगर आपके यहाँ मन्दिर है और वहाँ दुर्गा जी की मूर्ति है तो आपको चित्र रखने की कोई आवश्यकता नहीं है उसके बाद जहाँ चित्र या मूर्ति है वहाँ आपको थोड़ी मिट्टी लेनी है उसके ऊपर थोड़ा जो डालना है उसके ऊपर एक गंगाजल यार पानी भरा हुआ कलश रखना है कलश पर आपको कलेवा या नारा बांध देना है फिर उसमें आम के पेड़ का टहनी डालकर उसके ऊपर मिट्टी के कसूर एको रहकर उसमें चावल भरकर फिर उसके ऊपर एक जटा नारियल जिसपे आप लाल कपड़ा चाहे चुनरी लपेटकर उसको भी कलेवा या नारा से बांधकर उसी चावल के पात्र के ऊपर रख देना है और आपका कलश स्थापना हो गया अगर आप 9 दिन के व्रत है और कोई मनवांछित वरदान मांगना है तो आप अखंड ज्योति जला सकते हैं जो नौ दिनों तक लगातार जलती रहती है यह एक पीतल की ज्योति होती है तो आपको बाजार में अखंड ज्योति किसके नाम से मिल जाएगी इसमें देशी घी भरकर बाती डालकर कलश के सामने जला दें
उसके बाद वहाँ पर आपने थोड़े से जौ लेने है, और मिट्टी में या रेत में मिला लेने हैं, रेत या मिट्टी में मिला करके आपने एक पात्र रख लेना है, और उसके ऊपर आपने एक साफ जल से भरा हुआ कलश रखना है।
उसके बाद आपने दुर्गा सप्तशती का पाठ करना है। जी हाँ, आपने सत्य परायण होकर माता भगवती के निमित्त दुर्गा सप्तशती का पाठ करना है कुछ लोग 9 दिन के रामायण पाठ का भी आयोजन करते हैं जो भगवान राम के रावण के 10 वें दिन बद्ध करने पर समाप्त होता है अच्छी तरह से माता रानी की पूजा करनी है।
इस तरह से अगर आप माता की नियमित पूजा करते हैं, भगवती देवी की पूजा करते हैं, तो रोज़ शुद्ध मन से सुबह शाम दोनों टाइम दिया जलाकर पूजा करनी होगी इससे माता प्रसन्न होंगी और आपको मनवांछित वरदान की पूर्ति होगी
नवरात्रि के नौ दिन की देवी
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें पार्वती एवं हेमवती के नाम से भी जाना जाता है
नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है
नवरात्री के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती हैं। उनके इस स्वरूप का ध्यान हमें अपनी दुर्बलताओं से साहसपूर्वक लड़ते हुए उन पर विजय प्राप्त करने की शिक्षा देता हैं
नवरात्र के चौथे दिन मां के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी के बारे में कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। गोद में स्कन्द यानी कार्तिकेय स्वामी को लेकर विराजित माता का यह स्वरुप प्रेम, स्नेह, संवेदना को बनाए रखने की प्रेरणा देता है
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनके इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा।
नवरात्रि के सातवे दिन कालरात्रि की पूजा होती है दुर्गा जी के शक्ति रुपको कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। उनके शरीर का रंग अंधकार की तरह काला हैं।
नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी
नवरात्रि के नौवें दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा होती है।
नवरात्रि में सभी देवियों की पूजा रोज सुबह शाम करते हुए मन वांछित वरदान मांगे माता रानी आपकी सारी मनोकामना पूर्ण करेंगी आप विधि विधान से सात्विक भोजन बनाए और खाए और माता रानी का जागरण करे माता रानी आपके कष्ट को हर लेंगी और आपको सुख समृद्धि प्रदान करेंगी
अतः आप भी नवरात्रि में सुद्ध मन से माता रानी की पूजा करे और आशीर्वाद प्राप्त करे
कुछ हमेशा पूछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर
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